Friday, June 24, 2011

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों .........

                                                       कुछ साल पहले की बात है ...सुबह सुबह शिव खेडा का interview आ रहा था टीवी पर ......देश में आम चुनाव होने वाले थे और वो चुनाव लड़ने जा रहे थे ......सो interview में वो व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहे थे . पूछने वाले ने पूछा की आप अकेले क्या कर लेंगे ......अकेला चना कौन सा भाड़ फोड़ लेगा .....जो जवाब उन्होंने दिया वो आज तक याद है मुझे ....अरे आज तक जिसने भी भाड़ फोड़ा वो अकेला ही था .....गाँधी ......महर्षि दयानंद....राम मोहन रॉय .....बुद्ध ....सब अकेले ही तो चले थे ......जब मैं अपने ब्लॉग का नाम रखने लगा तो यूँ ही मुझे ये बात याद आ गयी और मैंने नाम रख दिया........ अकेला चना ........कल बैठे बैठे एक और किस्सा याद आ गया ..........एक और अकेला चना हुआ है हमारे देश में जिसने ऐसा भाड़ फोड़ा जो सरकार नहीं फोड़ पायी 60 साल में ........
                                                       बिहार के गया जिले में एक गाँव है गहलौर ......उसमे एक आदमी हुआ है ....नाम था दशरथ मांझी .......अब गहलौर गाँव की समस्या ये है की वो एक छोटी सी पहाड़ी से घिरा हुआ है और गाँव वालों को हर काम करने के लिए उसके उस पार जाना पड़ता है .....सबसे नज़दीक क़स्बा लगभग 60 किलोमीटर दूर है ......हुआ यूँ की एक दिन दशरथ मांझी पहाड़ी के उस पार  खेतों में काम कर रहे थे और उनकी पत्नी फागुनी देवी उनके लिए भोजन पानी ले के आ रही थीं .....तभी उनका पाँव फिसल गया और वो घायल हो गयी ........इस एक छोटी सी घटना ने दशरथ मांझी को प्रेरित किया और उन्होंने ठान लिया  की इस पहाड़ी को काट कर के आने जाने लायक रास्ता बनाना है .........एक हथौड़ी ....एक छेनी ...और एक तसला ले कर जुट गया वो आदमी अपने काम में ........शुरू में तो किसी ने ध्यान नहीं दिया ..........घरवाली बोली ये क्या काम फान दिया ....लड़के बोले पागल है .....पर दशरथ  मांझी लगे रहे .......बस लगे रहे ....और दो चार दिन या महीना दो महीना नहीं .........पूरे 22 साल अकेले लगे रहे ........इस बीच गाँव वालों को कौतूहल तो  होता था .....कुछ लोग आते थे कभी कभी देखने ....बाद में कुछ लोगों ने दशरथ को छेनी ..हथौड़ी वगैरह देना शुरू कर दिया ...अपनी तरफ से ....पर पूरे 22 साल वो अकेले लगे रहे ......हाँ एक अच्छी ...आज्ञाकारी पतिव्रता पत्नी का धर्म निर्वहन करते हुए उनकी  पत्नी रोज़ दिन में दो बार उनका खाना पानी ले कर आती थी ....और अंत में 22 साल  बाद उस आदमी का सपना पूरा हुआ जब उसने उस पहाड़ी की छाती चीर के 360 फुट ( 110 मीटर ) लम्बा ,25 फुट  (7 .6 मीटर ) गहरा और 30 फुट ( 9 .1 ) मीटर चौड़ा रास्ता बना डाला ...........एकदम निपट  अकेले ....बिना किसी सहायता के .......बिना किसी प्रोत्साहन के ....और बिना किसी प्रलोभन के .......वो आदमी पूरे 22 साल लगा रहा ........न दिन देखा न रात ....न धूप देखी, न छाँव .......न सर्दी न बरसात ......वहां न कोई पीठ ठोकने वाला था ....न शाबाशी देने वाला ....उलटे गाँव वाले मज़ाक उड़ाते थे ....परिवार के लोग हतोत्साहित करते थे .......22 साल तक वो आदमी अपना काम धाम छोड़ के लगा रहा .....अरे कही किसी के खेत में काम करता तो पेट भरने लायक अनाज या मजदूरी तो पाता .......हम लोग exercise करने जाते हैं तो एक ग्रुप बना लेते हैं ...अकेले मन नहीं करता ...कुछ लोग साथ होते हैं तो अच्छा लगता है .....वो आदमी अकेला लगा रहा ...उस सुनसान बियाबान में .......और एक बात बता दूं ....गर्मियों में उस जगह का तापमान 50 डिग्री तक पहुँच जाता है .......खैर 22 साल बाद, जब वो सड़क या यूँ कहें रास्ता बन कर तैयार हो गया तो उस इलाके के गाँव वालों को अहसास हुआ अरे ........ये क्या हुआ ......गहलौर से वजीरगंज की दूरी जो पहले 60 किलोमीटर होती थी अब सिर्फ 10 किलोमीटर रह गयी  है ............बच्चों का स्कूल जो 10 किलोमीटर दूर था अब सिर्फ 3 किलोमीटर रह गया है .......पहले अस्पताल पहुँचने में सारा दिन लग जाता था ...उस अस्पताल में अब लोग सिर्फ आधे घंटे में पहुँच जाते हैं ......आज उस रास्ते को उस इलाके के 60 गाँव इस्तेमाल करते हैं ............
                                                  धीरे धीरे लोगों को दशरथ मांझी की इस उपलब्धि का अहसास हुआ ....बात बाहर निकली ........पत्रकारों तक पहुंची .......news papers , magazines में छपने लगा तो सरकार तक भी खबर पहुंची ........नितीश बाबू ने कहा सम्मान करेंगे ......जो सड़क काट के बनायी है उसे PWD से पक्का करवाएंगे जिससे की  ट्रक बस आ सके ..........गहलौर से वजीर गंज तक पक्की सड़क बनवायेंगे ......बिहार सरकार का सबसे बड़ा पुरस्कार दिया ........भारत सरकार को पद्मभूषण देने के लिए नाम प्रस्तावित किया ...........पर वाह रे मेरे भारत देश ...वाह .......आगे क्या हुआ ?????? सुनिए ........
1 ) वन विभाग बोला की दशरथ मांझी ने गैर कानूनी काम किया है ......हमारी ज़मीन को हमसे पूछे बिना कैसे खोद दिया .........इसलिए उसपे पक्की सड़क नहीं बन सकती .......वन विभाग ने कोर्ट से stay ले लिया है ..........दशरथ मांझी पिछले साल मर गए ........वो रास्ता आज भी वैसा ही है जैसा वो छोड़ कर मरे थे ....गाँव वाले किसी तरह वहां से साइकिल ,मोटर साइकिल वगैरह निकाल लेते हैं ...........
2 ) वजीर गंग से गहलौर वाली सड़क अभी तक अटकी हुई है क्योंकि वन विभाग की ज़मीन पर PWD कैसे सड़क बना देगी ??????
3 ) भारत सरकार के बड़े बाबुओं ने पद्म भूषण ठुकरा दिया .....ये कह  के की पहले जांच कराओ की क्या वाकई  एक आदमी ने ही अकेले इतना बड़ा पहाड़ खोद दिया ......कैसे खोद सकता है ....ज़रूर अन्य लोगों ने मदद की होगी .........prove करो की अकेले ही खोदा है .........
                                              इस पूरी कहानी का सबसे दर्दनाक पहलू ये रहा की 22 साल की इस लम्बी घनघोर तपस्या में सिर्फ एक आदमी ......जो दशरथ मांझी के साथ खड़ा रहा .........उनकी पत्नी फागुनी देवी ....वो उस दिन को देखने के लिए जिंदा नहीं रही जब वो सपना पूरा  हुआ ...........रास्ता बन कर तैयार होने से लगभग दो साल पहले वो बीमार हुई और सारा दिन लग गया उन्हें अस्पताल पहुंचाने में ......और रास्ते में ही उनकी मौत हो गयी ........
.वो पहाड़ जो दशरथ मांझी ने खोद डाला ....अकेले ......


दशरथ मांझी

                                              बुंदेलखंड के जो किसान आत्महत्या कर रहे हैं उनके लिए सन्देश देना चाहता हूँ ....वहां ज्यादातर 60 - 70 फुट पे अच्छा ख़ासा पानी मिल जाता है .........मैंने वहां एक आदमी को अकेले एक कुआँ खोदते देखा है .....उसके जवान लड़के उसे गरियाते थे की बुढवा पागल है और बुढवा रोज़ सुबह गैंती फावड़ा ले कर पहुँच जाता था खेत पे .....और अकेले ही 3 -4 साल में उसने एक विशालकाय कुआँ खोद दिया था ........उस अकेले कुए से उसका परिवार 10 -12 acre की शानदार खेती करता था ......हमारे गाँव के बगल में ही एक विशाल  तालाब है जिसे एक अकेले साधू ने 17 साल में खोदा था ........महाराष्ट्र के लातूर जिले में एक अकेले व्यक्ति ने भी लगातार 17 सालों तक अपने खेत में खुदाई की ........उसके पहले दो कुँए fail हो गए और उनमे पानी नहीं निकला पर उसने हार नहीं मानी और लगा रहा और अंत में तीसरे कुए में से धरती की छाती फोड़ के पानी निकाल ही लिया ....अपनी एक फिल्म में मशहूर फिल्म निर्देशिका सईं परांजपे ने इस घटना का ज़िक्र  किया है ................किस गुमनाम शायर ने लिखा है .........कौन कहता है की आसमान में छेद हो नहीं सकता ........एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों ........ये लेख हिन्दोस्तान के उन किसानों को .......और उन students को......... समर्पित है.......... जिन्होंने हार मान के ख़ुदकुशी कर ली ........
                                             

19 comments:

  1. सरकार , आस-पास के लोग ..... ऐसे ही होते हैं , वक़्त भी इस आपाधापी में गुजर जाता है, लेकिन पर चाहत की पहचान , कर्मठता कभी गुम नहीं होती ! आप जैसे लोगों की कलम में वे दोनों जिंदा हैं न .... मैंने इसके बारे में सुना , आपसे वे यादें फिर से ताजा हो गईं

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  2. लालफीताशाही और भ्रष्ट व्यवस्था जिसका सामान्य मनुष्य से कोई भावात्मक लगाव नहीं है उसमें ऐसा होना स्वाभाविक है
    अकेले चने को अब इस व्यवस्था के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा..
    दशरथ जी ने भागीरथ का कार्य किया है...भगवन उनकी आत्मा को शांति दे

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  3. आपका आलेख मुर्दे में भी जान फूंक देने वाला है....

    साधुवाद आपका...

    बहुत आवश्यकता है आज ऐसे लेखन की...

    लेकिन एक समस्या है पूरा आलेख सुस्पष्ट फॉण्ट में पठनीय नहीं हो पा रहा...कृपया तकनीकी कमियां दूर करने का प्रयास करें...

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  4. वाह।
    दशरथ माझी को सलाम।
    सच कहूं तो आपका यह लेख पढते पढते दिमाग में यह आ गया था कि आखिर में यही होगा कि सरकारी विभाग वाले कानून तोडने का आरोप लगा देंगे उस पर.... और हुआ भी यही।
    कहते हैं न मैं अकेला ही चला था जानिबें मंजिल मगर

    लोग जुडते गए और कारवां बनता गया......
    दशरथ मांझी ने अकेले ही बडा काम कर दिया।
    आपका आभार कि आपने उनके इस काम को पढने का अवसर दिया।

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  5. अजीत जी,सही कह रहे हैं आप.भाड़ को तो हमेशा अकेला चना ही कमजोर करता है.उसके टूटने का श्री भले ही जमात को जाए.बहुत ही उत्साहवर्धक एवं मार्गदर्शी आलेख.

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  6. वाह!! प्रेरणादायक प्रस्तुति!!

    कर्मवीर दशरथ माझी को अनेकों सलाम!!

    ऐसी विलक्षण प्रस्तुति के लिए अजित जी ्का आभार

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  7. bahut umdaa..sach kaha..akele kya nahi ho sakta bus jajaba chahiye..Kudos to u..regards Era..

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  8. हमारे यहाँ एक कहावत है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड सकता .....लेकिन भड्भुझे कि आँखे फोड सकता है |..और इन सरकारी नुमैन्दो कि अब हम आपने मेहनत व् कर्मो से आँखे फोडनी होगी

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  9. बहुत ही प्रेरक प्रस्तुति।

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  10. Is it possible for everyone to be as strong as the above mentioned people? Is everyone as strong as दशरथ मांझी ? No, we are not same, neither we can be, design of our society is like this only, there has to be differences, and that is what it is. Those who committed suicide must be weakhearted and being weak hearted is not bad, IMO

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  11. Prerna milti hai aise lekh se... Dashrat Majhi ko salaam.

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  12. natmastak to this post and Dashrat Majhi

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  13. dashrath majhi jaise log desh ki dasha aur disha dete rahege aise hi log hamare adarsh rahrgr raha kendra sarkar ki bat wastaw me majhi to bhartiya hai yaha desh bhakto ko kuchh nahi desh drohiyo ko hi sab kuchh.

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  14. it proves nothing is impossible if u have will to do...no matter what other say...grt people gud post SAADHUVAAD

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  15. धन्यवाद दोस्तों ....उत्साह वर्धन के किये .......इधर बहुत दिनों से लिखने में मज़ा नहीं आ रहा था .....मुझे लग रहा था की मेरे लेखन की धार कुछ कम हो गयी है .......आप लोगों ने उत्साह वर्धन किया ...धन्यवाद सभी को ......blogger में mozilla firefox से sign in करें .....ये इसे सबसे अच्छा सुप्पोर्ट करता है ...इसमें फॉण्ट सम्बन्धी समस्या नहीं आती है .....
    अजित

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  16. Wah .... bahut khoob bhaiya
    aapke lekhani me bahut dam baa...
    aisahi likhat rahi.. :):)

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  17. ek patthar to tabiyat se uchhalo yaaron ......ye dushyant ki kavita hai

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  18. एक पत्थर तो तबियत से उछालो जरा। दद्दा धन्यवाद आपका।

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