Sunday, February 6, 2011

5 कहानियां ....शिक्षा जगत से

1) कोलकाता के la martiniere स्कूल के 13 वर्षीया छात्र rouvanjit ने गत वर्ष अपने घर में फंदा लगा कर आत्महत्या कर ली .विद्यालय के प्रिंसिपल सुनिर्मल चक्रवर्ती ने उसे 4 दिन पहले 2 छड़ी मारी थी ........विद्यालय के 4 अन्य अध्यापकों पर भी ऐसे आरोप हैं कि वे rouvanjit को torture और haress करते थे ........गत सप्ताह कोलकाता कि एक अदालत ने पाँचों teachers पर आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मुकद्दमा चलाने का आदेश दिया है .....

2) हमारे गाँव के पास एक क़स्बा है .......सैदपुर वहां एक विद्यालय है.......town national intermediate college ......60....या......70 के दशक में वहां एक हिंदी के अध्यापक हुआ करते थे .......नाम था......... हरषु प्रसाद सिंह रोजाना विद्यालय आते थे....कभी अपना घंटा मिस नहीं करते थे .....बड़े मन से ...भाव विभोर हो कर पढ़ाते थे.......उनके एक शिष्य .....जो अभी हाल ही में एक डिग्री college के प्रिंसिपल पद से retire हुए हैं....उन्होंने मुझे बताया कि पूरे एक साल में सिंह साहब ने किताब के पहले chapter का डेढ़ पेज पढाया था .........पर जिसने वो डेढ़ पेज पढ़ लिया उनसे...........वो हिंदी का विद्वान् हो गया .........गत वर्ष सिंह साहब का निधन हो गया ....उस कसबे के लोग आज भी उन्हें बड़े सम्मान से याद करते हैं
3 ) मेरे एक मित्र कि पत्नी (mrs xyz) पंजाब के एक अत्यंत प्रतिष्ठित स्कूल .......बहुत बड़े ब्रांड ....जी हाँ आजकल शिक्षा जगत में भी ब्रांड हो गए हैं ............(nike.... reebok...और adidas की तरह) ....में teacher हैं.......पहले एक multi national company में काम करती थी ....जब वहां का preassure असहनीय हो गया तो इस्तीफ़ा दे कर स्कूल में teacher हो गयी। स्कूल का प्रशासन एक दम किसी mnc की तर्ज़ पर ही चलाया जाता है.....एक बहुत बड़ी company स्कूल को consultancy देती है .......शिक्षा का मशीनी करण कर दिया गया है .......अध्यापक गण preassure और तनाव में कार्य करते हैं....सारा दिन खड़े रह कर ही पढ़ाना अनिवार्य है ....यहाँ तक की कापिया जांचते समय भी .....वो स्कूल से आते और जाते समय एक घंटे की स्कूल बस की यात्रा में बच्चों की कापियां चेक करती हैं ......प्रिंसिपल का रवैया एकदम तानाशाही है .............teachers को हमेशा busy रखा जाता है......मैंने mrs xyz को हमेशा शारीरिक एवं मानसिक रूप से थका हुआ पाया है .....निजी बातचीत में एक दिन उन्होंने मुझे बताया कि वह इतना ज्यादा तनाव में रहती हैं कि कई बार उनका मन करता है कि मैनेजमेंट का गुस्सा वो बच्चों को पीट कर निकालें .....

4 ) 1990 में, मैं और मेरी पत्नी , हम दोनों ने मिल कर अपने गाँव में ,अपने घर में ही एक विद्यालय शुरू किया ......पूरे इलाके का वो पहला निजी स्कूल था .....सीमित संसाधनों में बिना कोई पूँजी लगाये ये कार्य शुरू हुआ .......जब बच्चों की संख्या बढ़ गयी तो हमने एक परिसर किराये पर ले लिया .......उसमे 8...10 कमरे और एक बहुत बड़ा बगीचा था.....कमरे छोटे छोटे थे इसलिए हमने बाहर खुले मैदान में छप्पर बना लिए जिन्हें क्लास रूम के रूप में प्रयोग किया जाने लगा .......बगीचे में आम के बड़े बड़े पेड़ थे......उनके नीचे जगह साफ़ करके वहां भी classes लगने लगी ......कुछ classes कमरों में, कुछ छप्पर में .....और कुछ पेड़ों के नीचे लगती थी .......कमरों में कोई नहीं बैठना चाहता था ....सबसे ज्यादा चाहत पेड़ के नीचे बैठने की होती थी .......मुझे याद है एक क्लास जो कमरे में लगती थी ....एक दिन उसके students हमारे पास आये और उन्होंने शिकवा किया की उन्हें कभी पेड़ के नीचे पढने का मौका नहीं मिलता है ....हालां की पेड़ के नीचे जमीन पर टाट पर बैठना पड़ता था.....कमरों और छप्पर में furniture था .......शिक्षण में हमारा पूरा परिवार लिप्त था........कुछ स्थानीय teachers भी थे......हालां की teachers की समस्या बनी रहती थी ....पर जैसे तैसे .....धीरे धीरे हमारे पास अच्छा स्टाफ हो गया था ......संसाधन सीमित थे फिर भी पढाई बहुत अच्छी होती थी .....अभिभावक पढाई से तो संतुष्ट थे परन्तु संसाधनों को ले कर हमेशा शिकायत रहती थी.......परन्तु बच्चे बहुत खुश रहते थे .......खेल कूद खूब होता था ......activities खूब होती थी .......पर धीरे धीरे अभिभावकों के दबाव में और अन्य कारणों से हमारे ऊपर भी एक बड़ी बिल्डिंग बनाने का दबाव बढ़ता गया .........ऊपर से सरकारी मान्यता ....खाना पूर्ती और लाल फीता शाही ......हमने एक बड़े पूंजीपति को अपना पार्टनर बना लिया .......आज वही वद्यालय एक बड़ी बिल्डिंग में चलता है ....सरकारी मान्यता है .......1200 छात्र हैं ......एक एक क्लास में 70 तक बच्चे हैं.......पढाई की कल्पना आप स्वयं कर सकते हैं ..........पर अब हम दोनों वहां नहीं हैं ...........

5 ) मेरी पत्नी मोनिका इन दिनों पंजाब के एक कस्बे में एक स्कूल की प्रिंसिपल हैं .......स्कूल एक बहुत बड़े पूंजीपति परिवार ने नया खोला है ........बहुत बड़ी बिल्डिंग बन रही है .......अभी सिर्फ १५० बच्चे ही हैं ......ज़्यादातर छोटे .......स्टाफ नया और अनुभव हीन है.......प्रिंसिपल स्टाफ को धीरे धीरे सिखा रही है ......शारीरिक दंड पूर्णतया प्रतिबंधित है .......कोई teacher किसी बच्चे को हाथ भी नहीं लगा सकती ........इसके अलावा teachers पे कोई pressure नहीं है .....मोनिका बताती हैं की आज तक उन्हें किसी teacher को डांटने की ज़रुरत नहीं पड़ी......और यह की वो और उनकी teachers बहुत ज्यादा busy रहती हैं ......और उनके मुख्य कामों में यह है की उन्हें हर छोटे बच्चे को........ जो गोदी में उठाने लायक है ....उठा कर बहुत सा प्यार करना पड़ता है ........ज़्यादातर शिक्षा activity based है .......(
rote) रटंत तो बिलकुल नहीं है ......parents का pressure यहाँ भी रहता है .....वो रटंत पर ज्यादा ध्यान चाहते हैं उन्हें चिंता रहती है की उनके बच्चों को अब तक 20 तक पहाड़े नहीं रटाये गए .......exam में हर हाल में अच्छे नंबर आने ही चाहिए ....इत्यादि इत्यादि .........पर ख़ुशी की बात यह है की मैनेजमेंट प्रिंसिपल की नीतियों से सहमत है और parents और market forces के दबाव में नहीं आती ..........
हरशु
प्रसाद सिंह जैसे लोग तो पहले ही बहुत कम थे ....जो थे वो मर खप गए .......जो दो चार बचे हैं उन्हें ये सिस्टम खा जायेगा......la martiniere की घटना teachers कम्युनिटी को क्या सन्देश देती है ......हरशु प्रसाद जैसे लोगों ने कभी exam और syllabus को ध्यान में रख कर नहीं पढाया .....exam पास करने का एक अलग तंत्र तो पहले ही विद्यमान है .....उनको कोई पूछने वाला नहीं था की syllabus पूरा हुआ कि नहीं .... students ... प्रिंसिपल ... parents .......वो तो सिर्फ शिक्षा देते थे ....अन्य कोई चिंता नहीं ......पर आज हरशु प्रसाद होते तो उन्हें भी सुधर जाना पड़ता .......la martinere की घटना का ज़िक्र जब मैंने अपने दो चार अध्यापक मित्रो से किया ....तो उनका यही reaction था .......हम क्यों सिर खपायें ....जिसे पढना है पढ़ेगा ...बाकि जाएँ भाड़ में .......
शिक्षा
जगत के नए corporate तंत्र ने इसको मात्र business का नया माध्यम बना लिया है ........वो एक करोड़ लगा कर 10 करोड़ कमाना चाहते हैं ..........कपिल सिब्बल ने हमें examination system से निकाल कर वास्तविक शिक्षा कि ओर ले जाने कि एक इमानदार कोशिश शुरू की है .........शिक्षा क्षेत्र में सुधार करने के लिए एक व्यापक जन आन्दोलन कि ज़रुरत है आज बच्चों से ज्यादा उनके अभिभावकों को शिक्षित करने की ज़रुरत है.......शिक्षा में हरशु प्रसाद सिंह का रिजल्ट आज के system से 10 गुना ज्यादा प्रभाव शाली है , दीर्घ जीवी है ........वह वास्तविक शिक्षा है ...इसे समझने और समझाने की ज़रुरत है

2 comments:

  1. काफी सच थोड़ा काल्पनिक..
    कपिल सिब्बल की ईमानदार कोशिश बईमान सिस्टम मे ...
    एक्साम निहायत जरूरी है चाहे किसी को फेल ना करो ...

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  2. आज ज्यादातर स्कूल बिजनेस कॉम्पीटीशन की तर्ज पर चल रहे हैं। जो जितनी सुविधायें देता है उतना ही माल कमाता है। अभिभावक भी यही चाहते हैं कि उनके लाडलों को फाइव स्टार सुविधायें मिले और बच्चा कुछ सीखे ना सीखे बस मार्क्स आने चाहिये। रटंतू तोते बनाये जा रहे हैं।

    प्रणाम

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